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देखो मेरे पूज्य पिता को




देखो मेरे पूज्य पिता को


देखो मेरे पूज्य पिता को।

अति भावुक पावन ममता को।।

न्यायनिष्ठ सुंदर समता को।

परम विनम्र महा प्रियता को।।


निर्छल परमेश्वर सहयोगी ।

साधु-संत परमारथ योगी।।

सहज गृहस्थ सत्य कल्याणी।

कढ़े गढ़े योधा मृदु वाणी।।


पारस जैसा गुणी रत्नमय।

रूप अलौकिक शिव कंचनमय।।

कृषक सुजान बुद्धि के सागर।

सभ्य सुसंस्कृति के मधु आखर।।


संस्कारसम्पन्न दयालू।

दिव्य मनीषी नित्य कृपालू।।

लक्ष्मीनारायण हरिहरपुर।

ब्रह्म जनार्दन शिव अंतःपुर।।


पंच बने प्रिय न्याय दिलाते।

उत्तम पावन बात बताते।।

सबका प्रिय बन विचरण करते।

हर मानव के दिल में रहते।।


ब्रह्मा-विष्णू-शिव जिमि सुंदर।

अनुभवशील प्रसन्न निरन्तर।।

ज्ञानवंत अति शांत महोदय।

सत्व प्रधान रम्य सूर्योदय।।


मिश्र कुलीन नम्र नित नामी।

सकल क्षेत्र के लगते स्वामी।।

आध्यात्मिक संवाद बोलते।

सबके मन को सहज मोहते।।


नहीं जगत में कोई दूजा।

करो पिता की केवल पूजा।।

मेरे पिता नित्य मुझ में हैं।

वही बोल-बोल लिखते हैं।।


वही बुद्धि के परम प्रदाता।

सन्तति के हैं वे सुखदाता।

शिक्षा-अन्न-ज्ञान देते हैं।

कष्ट-क्लेश को हर लेते हैं।।


धन्य-धन्य हे पूज्य पिताश्री।

सदा आप ही नारायणश्री।।

वंदनीय पित का अभिनंदन।

मुझ में पितागंध का चंदन।।


करो पिता का नियमित वंदन।

निश्चित वंदन प्रिय सुखनंदन।।

सदा पिता  गुणगायन कर।

आदर्शों का नित पालन कर।।





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1 Comments

Muskan khan

09-Jan-2023 06:08 PM

Nice 👌

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